शायद मैं पीड़ा जला देता हूं
मैं लिख लिख कर मिटाता हूं
जो मै दिल में नहीं रखना चाहता
मेरा दिल सिर्फ सही रखना चाहता है
मै मेरा तमस ,अहम , वहम सब लिखता हूं
मै मूर्खता से बुद्धिमत्ता का चरम लिखता हूं
शायद मैं खाली हो जाऊं ये भ्रम लिखता हूं
मै लिखता हूं विवशता को स्वतंत्रता से
मै लिखता हूं कांट छांट कर वेदना व्यथा
मै लिखता हूं पीड़ा सागर का कतरा भर
मै लिखता हूं कांटों का रूप ज्यादा
कंटकों की चुभन रहने देता हूं
मै अभी इस क्षण स्वयं सोम पिता हूं
फिर अगले क्षण मर मर क्यों जीता हूं
मैं पीड़ा को करुण भाव से लिखता हूं,
मै लिखी और गढ़ी हुई पीड़ा को...
जो मै दिल में नहीं रखना चाहता
मेरा दिल सिर्फ सही रखना चाहता है
मै मेरा तमस ,अहम , वहम सब लिखता हूं
मै मूर्खता से बुद्धिमत्ता का चरम लिखता हूं
शायद मैं खाली हो जाऊं ये भ्रम लिखता हूं
मै लिखता हूं विवशता को स्वतंत्रता से
मै लिखता हूं कांट छांट कर वेदना व्यथा
मै लिखता हूं पीड़ा सागर का कतरा भर
मै लिखता हूं कांटों का रूप ज्यादा
कंटकों की चुभन रहने देता हूं
मै अभी इस क्षण स्वयं सोम पिता हूं
फिर अगले क्षण मर मर क्यों जीता हूं
मैं पीड़ा को करुण भाव से लिखता हूं,
मै लिखी और गढ़ी हुई पीड़ा को...