...

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हे! खुदा मेरा क्या कसूर था...
हे! खुदा मेरा क्या कसूर था,
कि तुमने मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया ,
छीन के मेरा सब कुछ क्यों मुझे अपनो से दूर कर दिया,
हे! खुदा आखिर क्या कसूर था,
मेरा जो तुमने मेरी मुस्कान को उदासी मे बदल दिया,
आखिरकार ऐसा कौनसा गुनाह क्या,कि तुमने मेरा सब कुछ छीन लिया ,
ज्यादा कुछ नही था, मेरे पास बस अपने थे वो भी तुमने छीन लिए,
एक सीधी सड़क पर चल रही थी, मेरी जिदंगी क्यो तुमने उस सड़क को मोड़कर,मुझे मेरे अपनो से दूर कर दिया
न लौट के वापस आ पाऊँ, मै
तुमने मुझे मेरे अपनो से इतना दूर कर दिया,
क्या कसूर था, मेरा जो तुमने मुझे मेरे अपनो से इतनी जल्दी दूर कर दिया,
लपेटकर मुझे मौत के कफन मे क्यो मुझे मेरे अपनो से दूर कर दिया