...

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kaise ho? thik hai!
कुछ उलझने दिमाग की, हाथों की उंगलियां जाता रही थी,
कुछ परेशानियां मन की, माथे की लकीरे बता रही थी।
फिर भी अगर कोई पूछे, 'कैसे हो',
तो यह जुबान 'ठीक है' कह, अपना कर्म निभा रही थी।
बस एक झूठी सी मुस्कुराहट, उसका साथ निभा रही थी,
जो लोगों को उस 'ठीक है' पर, भरोसा दिला रही थी।।