...

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मेरी गजबन
भोली सूरत, मीन सी आंखें, लगता जैसे पुंगल की पद्मिनी हो,
हुस्न, रूह, अदा सब कमाल, लगता जैसे हसीं ख्वाब हो;
चंचलता और स्फूर्ति तुम्हारी, लगता जैसे नभ की दामिनी हो;
रूठना भी ऐसा तेरा, लगता जैसे सागर का सैलाब हो;

तुम्हें ऐतबार तो नहीं पर, लगता जैसे ढोला की मरवण हो,
रेगिस्तान भी मैं तैर जाऊं, लगता जैसे महेंद्र की मूमल हो;
आहट पर तेरी झूम जाऊं, लगता जैसे मेरी गजबण हो,
नाजुक से अधर तुम्हारे, लगता जैसे कमल का फूल हो;

तेरे कोमल हाथों का स्पर्श, लगता जैसे रेशम रुमाल हो,
तेरे पैरों की झांझर, लगता जैसे वीणा के तार हो;
तुमसा नहीं कोई यहां, लगता जैसे खुदा का कमाल हो,
तुम ही सुख-चैन मेरा, लगता जैसे जीवन का सार हो;

तुम हो तो मैं हूं, लगता जैसे मेरी परछाई हो,
तेरी मुस्कान से जी रहा, लगता जैसे मेरी दवाई हो;
एक पल की दूरी, लगता जैसे जन्मों की जुदाई हो,
तुम बिन न रह सकूं, लगता जैसे मेरी लुगाई हो...

© Naren07