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क्योंकि मैं पुरुष हु
#InvisibleThreads
क्योंकि मैं पुरुष हूं**

क्योंकि मैं पुरुष हूं, मुझसे उम्मीदें हैं आसमान छूने की, जज़्बातों को भीतर छिपाने की, आंसुओं को झूठी मुस्कान में बदलने की।

क्योंकि मैं पुरुष हूं, मुझे सिखाया गया है कि दर्द को बर्दाश्त करना ही मर्दानगी है, कमज़ोरी का नाम लेना भी यहां गुनाह माना जाता है, हर मोड़ पर संघर्ष करने की परिभाषा मुझे दी गई है।

क्योंकि मैं पुरुष हूं, समाज की नजरों में मैं एक योद्धा हूं, पर भीतर के युद्धों से कौन अवगत है? मैं भी इंसान हूं, भावनाओं का आकाश हूं, लेकिन इसे स्वीकारने का हक नहीं मुझे, क्योंकि मैं पुरुष हूं।

Vinay kumar mina
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