...

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ये कैसा मर्ज
जिक्र तुम्हारा!
मेरे हर एक लफ्ज़ में है;
मेरी नींदें!
तुम्हारे यादों के कर्ज में है;
चाहूं मैं तुम्हे एकतरफा,
ये कैसा मर्ज है?
अगर रो भी लूं तुम्हारी याद में सारी रात!
तो इसमें क्या हर्ज है?
© insinuation_pen✒️