...

5 views

मृगमरीचिका
उजली-उजली ख्वाहिशें
गहराती साल दर साल
भीगे-भीगे नम जज़्बात,
मन कुछ भारी-सा
बोझ बढ़ता ही गया..
भागते ख़्वाब पीछे-पीछे
इंद्रधनुष के पुल पर,
जुड़कर आसमां से
पहुंचते पांव जमीं तक
आंखे टिकी फलक पर,
मिलती ना रोशनी...
क्यूं थम गई बारिश?
मन फिर-से रेगिस्तान हुआ,
वक्त रेत-सा फिसलता गया..
उजली-उजली ख्वाहिशें
बहती रेत के साथ,
भागते ख़्वाब पीछे-पीछे
छूने मृगमरीचिका...


© आद्या