अरमान
बिखर कर आंच पर तपते है अरमान
किसी और ग़म में सुलगते है अरमान
परेशां तो करते ही रहते थे मगर अब
धुआं बन कर दिल से निकलते है अरमान
तुम्हारे सुलूक को भूलना आसान नहीं है
ताउम्र याद रखना भी तो ठीक नहीं
कि अब हमारे उसलूब में दिखते है अरमान
ये जो हमारे है...
किसी और ग़म में सुलगते है अरमान
परेशां तो करते ही रहते थे मगर अब
धुआं बन कर दिल से निकलते है अरमान
तुम्हारे सुलूक को भूलना आसान नहीं है
ताउम्र याद रखना भी तो ठीक नहीं
कि अब हमारे उसलूब में दिखते है अरमान
ये जो हमारे है...