...

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अरमान
बिखर कर आंच पर तपते है अरमान
किसी और ग़म में सुलगते है अरमान
परेशां तो करते ही रहते थे मगर अब
धुआं बन कर दिल से निकलते है अरमान
तुम्हारे सुलूक को भूलना आसान नहीं है
ताउम्र याद रखना भी तो ठीक नहीं
कि अब हमारे उसलूब में दिखते है अरमान
ये जो हमारे है अरमान ये तो तुम्हारे है अरमान
काशाना- ए- दिल को बहुत चुभते है ये अरमान
आसमां को चिखता कर देते है ये अरमान
उज्र आएगी एक दिन बहेगा सीतमगर हमारा
यादें सैलाब बन कर करेगी तमाशा
बहुत है तुम्हें सताने के अरमान
मगर फिर महोब्बत के दुश्मन है अरमान
जला कर बिखेर देते हैं इन अरमानों को तब हम
मगर दिल के कोने में रह जाते है अरमान
बिखर कर आंच पर तपते है अरमान
किसी और ग़म में सुलगते है अरमान


© Pavan