"समाज का रवय्या"
समाज का रवय्या रद्दी कागज़,
नई सोच से घबराते हैं..!
औरों की कमी पे उँगली उठाते,
अपनी गलती पर मुँह छुपाते हैं..!
फूलों को कुचल काँटों से संभल,
दोगलेपन की...
नई सोच से घबराते हैं..!
औरों की कमी पे उँगली उठाते,
अपनी गलती पर मुँह छुपाते हैं..!
फूलों को कुचल काँटों से संभल,
दोगलेपन की...