एक बेटी का माँ से सवाल?
एक बेटी करती है
अपनी माँ से सवाल
क्या लगेंगे मेरे भी पँख
छू लेने को आकाश
बोलती अपनी टूटी फूटी भाषा
क्या पूरी होगी मेरी अभिलाषा
क्या संवरेगा कभी मेरा जीवन
होती सदा मन में निराशा
माँ उसे दिलासा देती है
हाँ आएगा एक दिन
होकर घोड़े पर सवार
बदलने को तेरी किस्मत
आएगा तेरे सपनों का राजकुमार
बनाकर रखेगा तुझे राजकुमारी
सँवर जाएगी तक़दीर तुम्हारी
गम की परछाइयों से भी दूर
खुशहाल होगी जिंदगी तुम्हारी
बेटी इन बातों से संतुष्ट नहीं
अपनी ही माँ से है पूछती
क्या आपने भी किये थे...
अपनी माँ से सवाल
क्या लगेंगे मेरे भी पँख
छू लेने को आकाश
बोलती अपनी टूटी फूटी भाषा
क्या पूरी होगी मेरी अभिलाषा
क्या संवरेगा कभी मेरा जीवन
होती सदा मन में निराशा
माँ उसे दिलासा देती है
हाँ आएगा एक दिन
होकर घोड़े पर सवार
बदलने को तेरी किस्मत
आएगा तेरे सपनों का राजकुमार
बनाकर रखेगा तुझे राजकुमारी
सँवर जाएगी तक़दीर तुम्हारी
गम की परछाइयों से भी दूर
खुशहाल होगी जिंदगी तुम्हारी
बेटी इन बातों से संतुष्ट नहीं
अपनी ही माँ से है पूछती
क्या आपने भी किये थे...