कम्बख़त इस रात का क्या करे
किसी तरह दिन भर खुद को व्यस्त रख लेते हैं,
पर कम्बख़त इस रात का क्या करे,
चली आती हैं रोज पुरानी यादों का सैलाब लिए आँसू बन कर बह जाती हैं वो यादें
चाहें फिर न भी हो रोने के इरादे,
पर अश्कों पर किसका जोर,
कुछ सुनने नहीं देता ये अंतर्मन का शोर
फिर क्या, लिख देते हैं हम उन बेबाक अल्फाज़ो को ...
पर कम्बख़त इस रात का क्या करे,
चली आती हैं रोज पुरानी यादों का सैलाब लिए आँसू बन कर बह जाती हैं वो यादें
चाहें फिर न भी हो रोने के इरादे,
पर अश्कों पर किसका जोर,
कुछ सुनने नहीं देता ये अंतर्मन का शोर
फिर क्या, लिख देते हैं हम उन बेबाक अल्फाज़ो को ...