...

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दुःख क्या हैं । कुछ बचा हैं क्या।
दुःख क्या है क्या एक अहसास
या मेरे आखोँ से बहती ये आसु की धारा
या फिर वो शब्द जो
मेरे होठों से बाहर आना ही नहीं चाहते
आखिर ये दुःख क्या
जो मुझे तोड़ रहा है
या फिर जो मुझे चोट पोहचा रहा
ये दुःख क्या हैं ।

मैं डूबी एक सागर में ढूढ़ने
आंस की एक आशा
पर छिप गई अंधेरो में
अब ढूढ़ रही हुँ
एक छोटी सी किरण
जब पोहचि किरण में
तो अब ढूढ़ रही हुँ अंधेरा
ख़ुद को छिपाने के लिए
जब छिप गई मैं तो
ढूढ़ रहे हैं सब मुझे।