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सफ़र में .....
सफ़र में
तू मुझको
युं ही
अकेला छोड़ गई
किया क्या था मैंने
जो तू मुझसे
युं ही
मुहं मोड़ गई
ना सोचा तूने
ना तुझको
मेरा ख्याल आया
बस बीच राह में
तू मुझको
युं ही
अकेला कर गई
माना गलती ना थी तेरी
बस में ना था तेरे कुछ
पर उस खुदा से तो
तू लड़ सकती थी
मेरे खातिर
तू उससे
झगड़ सकती थी
पर तू मुझको
युं ही
रुला गई
आँखों में आंसू
जिंदगी भर का
देकर ग़म
तू तो मुझको
युं ही
भुला गई
सारे नाते पीछे छोड़
तू तो मेरा दिल तोड़
युं ही
मुझको रुला गई
तेरे बिन
मैं कैसे जिऊं
जो तू मुझसे
युं ही
अपना दामन छुड़ा गई।
© Sankranti chauhan
तू मुझको
युं ही
अकेला छोड़ गई
किया क्या था मैंने
जो तू मुझसे
युं ही
मुहं मोड़ गई
ना सोचा तूने
ना तुझको
मेरा ख्याल आया
बस बीच राह में
तू मुझको
युं ही
अकेला कर गई
माना गलती ना थी तेरी
बस में ना था तेरे कुछ
पर उस खुदा से तो
तू लड़ सकती थी
मेरे खातिर
तू उससे
झगड़ सकती थी
पर तू मुझको
युं ही
रुला गई
आँखों में आंसू
जिंदगी भर का
देकर ग़म
तू तो मुझको
युं ही
भुला गई
सारे नाते पीछे छोड़
तू तो मेरा दिल तोड़
युं ही
मुझको रुला गई
तेरे बिन
मैं कैसे जिऊं
जो तू मुझसे
युं ही
अपना दामन छुड़ा गई।
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