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शब्द हमारे लिए ईश्वर का स्वरूप है।,
किस तरह से जीवन के हर पहलू में
हम अनजान हो जाते हैं
जीवन के हर मायने को देखते हुए भी
समझने की जरूरत ही नहीं समझते हैं!
यह कैसी विडंबना है ना खुद में!
जो हमें हमारे ही परिचय से दूर रखती है
और हर उन ख्यालों में बाद्य करती हैं
जो शायद हमारे लिए ही बना नहीं है
यह कैसी अजीब विडंबना है यह जीवन !?
विचार तो करना है!!
हर उन सुर्ख़ियों से हमें गुजरना पड़ता है,
पर हम फिर भी सत्यता को ही समझने में कहीं कतराते हैं! बस उन आशाओं के पीछे भाग पड़ते हैं
जो बस अपनी छवियां ही बिखेर रही होती हैं!!
हमें हमारे हर जज्बातों को हमें खुद ही समझना है,
खुद ही उनकी हर आंकलन की व्यवस्था रखनी है
उनके दर्जे किस स्तर पर हैं!
यह हमें ही ख्याल रखना है,
क्योंकि हम भूल जाते हैं!
यह सब हमारा ही खुद का कर्म है
जो समक्ष प्रस्तुत कर रहा है हमारी अपनी विचारधाराओं को,
और जिनसे हमें जीवन के हर उन पलों की सुर्खियां बनाने के लिए तैयार होना पड़ रहा होता है,
जिनसे हम जुड़े हुए है!!
हमारी प्रत्यक्ष हर एक छवियां हमारे शब्दों की ही अधीन है,
क्योंकि शब्दों के द्वारा ही हम प्रत्यक्ष हर भावों को रखते हैं, तो शब्द ही यहां पर हमारे लिए ईश्वर का स्वरूप है,
और हमें उनकी कद्र सदैव बनाए रखनी है,
यही हमारे लिए सर्व आधार है व सर्वोत्तम पूजा है।
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