" असहाय बचपन "
दिन आज फिर निकला है
सूरज उसी रौशनी के साथ आया है
पर आज बात कुछ और है
आज किसी नन्हे ने दिल को पिघलाया है
भूख की तड़प इतनी बढ़ जाये कि
पत्थर में भी खाना नज़र आये
प्यास इतनी संगीन हो जाये कि
आँखे आंसुओ से प्यास बुझाये
अपनों से ही दर्द इतना मिल जाये कि
रिश्तों से ही भरोसा उठ जाये
अपना...