...

4 views

जाति 2.0
तड़प रहे थे लोग यहाँ
थे भटक रहे तेरे दर पे,

शक्तिशाली हो फिर भी
तुम देख रहे थे ऊपर से,

हम मर रहे थे खेतों में
फसल लगाने को उनके,
वो मचल रहे थे अपने मन में
और बोझ ढुआने को हमसे,

शूद्र बताकर बहा रहे थे
खून को ओ मेरे तन से,
ईर्ष्या में ओ जल रहे थे
ताने रखते लाठी सर पे,

शक्तिशाली हो फिर भी
तुम देख रहे थे ऊपर से

तुमको तेरा जात बताऊं
कहकर थे गरियाते हमको,
हम हैं नीची जाति के
एहसास दिलाते थे हमको

साफ करो तुम बर्तन जूठा
हुकुम चलाते थे हमसे,
अशुद्ध करोगे हमको तुम
कह अछूत बताते थे हमको,

उजड़ रहा था जब सबकुछ
हम हो रहे थे बेघर घर से,

शक्तिशाली हो फिर भी
तुम देख रहे थे ऊपर से I

© All Rights Reserved