...

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नए सफर में...
थम सी गई थी जिंदगी, और सब रुक सा गया था,
ख़ामोश थी जुबां और सिर कंधो पर झुक सा गया था,
लब्ज़ सुख गए थे कंठ में, मन उद्विग्न उलझ सा गया था,
आंखे वीरान सी, पलको का परदा कुछ झुलस सा गया था,
और जमाने ने होठ सिल दिए मेरे यह कहकर
हक नहीं है काफ़िर तुझे कुछ कहने का,
सिर्फ सुनने की आदत डाल ले तू ,
और तोड़ दी कलम मेरी बड़ी बेरुखी से,
जला दिए कागज मेरे बड़ी बेदर्दी से,
पर मेरे ह्रदय में बसती है रचनाएं मेरी
जमाने तू दिल जला सकता है, भावनाएं नहीं
लो तोड़ दी है सारी बंदिशे आज ठोकरों में,
फिर भर भर लाया हूं नायाब हीरे टोकरो में,
थाम लेना मिलके सब हाथ मेरा नई डगर में,
बस आपके भरोसे निकल पड़ा हूं नए सफर में.....।
हितेश परमार "भ्रमर"