Gunahgaar
जो मैं कह दूँ, मुझे उसका चेहरा आज भी याद है,
आशिक़ ना समझ लेना।
जालसाजी उसने ऐसी की थी,
कि भूला ना पाए।
मोहसिन तो था ही उसका चेहरा
पर मोहब्बत में थे हम और
शायद,
इसलिए जालसाज को पहचान ना पाए।
छूक हो गई थी हमसे अफ़सोस, आज भी है,
कातिल जितना भी हसीन हो, करना उसे क़त्ल ही है।
ख्वाबों, इरादों, और मन्नतों में आज भी
तुझे याद किया करते हैं।
हां, गुनाहगार तो हैं तू, पर शायद तुम्हें
आज भी प्यार करते हैं।
© Medwickxxiv