एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में अन्त की ओर ।।
लेखक अपनी इस गाथा में कहता फिरता,
ये जग वैशयाओ का मेला है,
सत्री का तन मनु का मन डोल गया,
जिससे जन्मा उसी के तन की हवस का बौराया,
नायक यह रचना करता है,
कि वैशया के साथ संबंध बनाने वाला हर व्यक्ति बुरा नहीं होता मगर जिसमफरूह जरूर होता है,
वेशया की तो मज़बूरी है मगर तेरी,
तेरी जिसमफरूह की क्या मजबुरी है,
उसकी तो यह ख्वाहिश है -लेखक -वासुदेव।।
लेखक द्वारा प्रशनवाचक ने अपनी औरतों का वर्णन किया है -वासुदेव श्रीकृष्ण मुख्य अतिथि।
दर्शालूओ द्वारा यह...
ये जग वैशयाओ का मेला है,
सत्री का तन मनु का मन डोल गया,
जिससे जन्मा उसी के तन की हवस का बौराया,
नायक यह रचना करता है,
कि वैशया के साथ संबंध बनाने वाला हर व्यक्ति बुरा नहीं होता मगर जिसमफरूह जरूर होता है,
वेशया की तो मज़बूरी है मगर तेरी,
तेरी जिसमफरूह की क्या मजबुरी है,
उसकी तो यह ख्वाहिश है -लेखक -वासुदेव।।
लेखक द्वारा प्रशनवाचक ने अपनी औरतों का वर्णन किया है -वासुदेव श्रीकृष्ण मुख्य अतिथि।
दर्शालूओ द्वारा यह...