ग़ज़ल
मुस्कुराती है रात आंखों में,
तुम जो रहते हो मेरे ख़्वाबों में।
दूर रह कर भी दूर मुझसे नहीं,
तुम हो हर पल मेरे ख़यालों में।
फूल खिलते थे तेरे आने से,
अब वो रौनक कहां है बागों में।
अब भी आती है जिस्म से खुश्बू,
यार लिपटा कभी था बाहों में।
बाद तेरे न कुछ रहा बाकी,
ज़िन्दगी बस रुकी है सांसों में।
दफ्न दिल में किए तेरी यादें,
खुद को उलझा रखा है कामों में।
© शैलशायरी
तुम जो रहते हो मेरे ख़्वाबों में।
दूर रह कर भी दूर मुझसे नहीं,
तुम हो हर पल मेरे ख़यालों में।
फूल खिलते थे तेरे आने से,
अब वो रौनक कहां है बागों में।
अब भी आती है जिस्म से खुश्बू,
यार लिपटा कभी था बाहों में।
बाद तेरे न कुछ रहा बाकी,
ज़िन्दगी बस रुकी है सांसों में।
दफ्न दिल में किए तेरी यादें,
खुद को उलझा रखा है कामों में।
© शैलशायरी
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