थोड़ी छाव चाहता हूं
छूटा हु शहर में , गांव में मिलना चाहता हु ।
धूप में झुलस गया हु, थोड़ी छाव चाहता हु।
फिर से देखना चाहूं नदी के पत्थर,
आंख खोल पानी के अंदर ।
चढ़ूं पेड़ में आम के , गिरु ऊंचाई से, नदी के गहरे पानी को सुनू।।
चलू खेत की टेढ़ी मेढ़ो पर,
जंगल की झाड़ियों से चार चुनूं ।
अपने गांव से मिलना चाहता हु ।
थोड़ी छाव चाहता हु।।
संदेश-रचित
© SandeshAnkita
धूप में झुलस गया हु, थोड़ी छाव चाहता हु।
फिर से देखना चाहूं नदी के पत्थर,
आंख खोल पानी के अंदर ।
चढ़ूं पेड़ में आम के , गिरु ऊंचाई से, नदी के गहरे पानी को सुनू।।
चलू खेत की टेढ़ी मेढ़ो पर,
जंगल की झाड़ियों से चार चुनूं ।
अपने गांव से मिलना चाहता हु ।
थोड़ी छाव चाहता हु।।
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