...

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किसीको।
वह एक हूनर जो नहीं आता किसको,
महफिलों में चुप रहना नहीं आता किसको।

मैं मेरे हर रंज,हर गम से वाक़िफ हूं बढ़िया,
मैं बाजारु थोड़ी हूं जो ज़ख्म दिखा दूं किसको।

मैं अपने आप में एक क़िताब हूं कमाल की,
मुझे दिलों दिमाग से पढ़ना नहीं आता किसको।

क्या कहूं तुमसे? के बेपनाह मोहब्ब्त की हैं,
मेरी हर बात को समझना नहीं आता किसको।

वह जो एक शक्स अनजान हैं मेरे नाम से,
वहीं मेरे बारे में बताता रहता हैं हर किसको।

पत्थर तो मैंने यूं ही फेका था आसमान में,
बारिश क्यूं हुई फरिश्तों?पत्थर लगा क्या किसको?
© वि.र.तारकर.