...

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काबिल नही!!
मेरे गमों को छोड़
वो तो मेरी खुशी में भी शामिल नहीं
फिर भी नजाने क्यों मैं उसके काबिल नही।
बरस रहा है यह आसमान
इसको बरसने दो
क्योंकि बरसेगा अब यह दिल नही
क्योंकि यह आकाश बादलों के काबिल नही।
और छट जाने दो बरसाती बादलों को
वो तो मेरी खुशी में भी शामिल नहीं।
फिर भी नजाने मैं क्यों उसके काबिल नही।
और रहती भले वो मेरी हर पंक्ति में काबिज नहीं।
क्योंकि लिख भी दूं अगर उसपे पूरी जिंदगी अपनी
फिर भी होगी मुझे वो हासिल नहीं।
मैं तो एक तरफा ही मरा हूं
फिर भी नजाने क्यों मैं उसके काबिल नहीं।
और वो कहती है क्यों मैं तेरी पंक्तियों में अब शामिल नहीं।
कैसे कहूं अब रहा मेरी पंक्तियों में वो सार नही।
देख आज भी तुझपे ही पंक्तियां लिख रहा
बदला हूं मैं मेरी पंक्तियों का वो आधार नही।
अभी भी कहती अगर मिलना हो तो आमिल यहीं।
मैं भी क्यों मिलूं
जब वो मेरे दुखों में शामिल नहीं।
जब मैं उसके काबिल नहीं।
© आकाश बिष्ट

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