...

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शादी "एक बंधन"
पर्वतों ने सर झुका दिया
देख उसकी दृढ़ता
हवा ने भी रुख बदल लिया
नाप उसकी चंचलता
एक कठोर चट्टान की तरह
वह बढ़ी जा रही थी
"वह नदी ही तो थी "

सागर से मिलन की आस में
बहती हुई निरंतर
एक किनारे की तलाश में
जो मिटा सके अंतर
एक मधुर गान गुनगुनाती हुई
वह बहे जा रही थी
"वह नदी ही तो थी "

आखिर मिल गई उसे मंजिल
पर क्या नहीं थी वह नादान
सागर से मिलन की चाह में
उसने खो दी अपनी पहचान
इंसानी पहलुओं को शायद
वह जिए जा रही थी
"वह नदी कहां थी"