...

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हम खड़े हैं ( या रक्तधूल शूरवीर)
#धुल
शुर धुल से घुले मिले हैं;
तभी तो रण में डटे पड़े हैं;
हुंकारों से शत्रु घीघ बने पड़े है;
हम खड़े हैं।
हम खड़े हैं।

हम धूल-धरा में मिल जाएंगे,
माटी का रक्त चुकाएंगे।
फिर वसुधा के आंचल में,
सुकुन से सो जाएंगे।

हैं प्रलय अभी हुंकार भरे,
कानों में हाहाकार करे।
हैं समय अभी और सिर्फ़ अभी,
रणचंडी का आह्वान करे।

तलवारे हाथों में ठनी हैं;
धुल रक्त से सनी हैं।
नंगे भालो की नोक पे,
धरती पे लाशें जमी हैं।

हम रक्त-धुल में सने हैं;
हम अंतिम सांस तक अड़े हैं ;
हम खड़े है।
हम खड़े है।






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