मंज़िल
अपनी ख़ामोश
चाहतों की तरह
इंतजार भी
खामोश है उसका
सपनों की राहें
मुन्तजिर उसकी
क्यूँ ढूँढे मंज़िल
नज़र उसकी
हो गया है
संगमरमर सा वो
अब ना भाये
कोई रंग किसी का
झुलसी...
चाहतों की तरह
इंतजार भी
खामोश है उसका
सपनों की राहें
मुन्तजिर उसकी
क्यूँ ढूँढे मंज़िल
नज़र उसकी
हो गया है
संगमरमर सा वो
अब ना भाये
कोई रंग किसी का
झुलसी...