...

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सबको पहचानने लगी हूँ

ख्वाब से अब जरा जगने लगी हूँ
जिन्दगी को बेहतर समझने लगी हूँ.
उड़ती थी शायद कभी ऊंचा हवा में
जमी पर अब पैदल चलने लगी हूँ.
लफ्जो की मुझको जरुरत नहीं है
चेहरो को जब से...