...

7 views

*शुकूं की छाव में..*
कट जाए उम्र काश, इस सुकूं की छाव में।।
जो अपनापन बचा है, अभी तक गांव में।।

थक सी गई थी जिंदगी, शहर की दौड़ में।
अपना कोई मिला नहीं, मतलब कि होड़ में।।
फिर ज़ख्म न कुरेदना, दिल की घाव में।
कट जाए उम्र काश, इस सुकूं की छाव में।।

मां के हाथों की रोटियां, पिता का वो दुलार।
मिलता रहे उमर भर, उनके रहे उपकार।
हम छोड़ आए शहर, कॉरोना के दांव में।
कट जाए उम्र काश, इस सुकूं की छाव में।।

पतवार जिंदगी की, अपने ही हाथ हो।
पतझड़ भला है गांव का, कोई भी बात हो।
पत्थर के शहर का कहर, न हो अब ठाव में।
कट जाए उम्र काश, इस सुकूं की छाव में।।

अपनी उमंग हो, मन कितना भी तंग हो।
ईंटों की छत भले न हो, पेड़ो में रंग हो।
हम जी लें ये उमर, तितलियों के उड़ाव में।
कट जाए उम्र काश, इस सुकूं की छाव में।।

खेतों की हरी घास से, झगड़ा बहू का सास से।
उम्मीद और उल्लास से, सूखे कुंए की प्यास से।
चुभते भले कांटे यहां है, नंगे पांव में।
कट जाए उम्र काश, इस सुकूं की छाव में।।

#dbmuskan #poemdbm #lovedbm #lifedbm