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वो शख्स बाकई में हमारा नहीं था...
जिसके बिना जीना गंवारा नहीं था।
वो शख्स बाकई में हमारा नहीं था।।
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बेज़ा है सितारों की मुझसे शिकायत,
मैंने फ़लक से चाँद उतारा नहीं था।।
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लग्ज़िश में गिरता कहीं सज़दा होता,
ऐसा गर्दिश में मेरा सितारा नहीं था।।
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सच कह दिया तो रूठ गए सब यार,
मुझपे झूठ का कोई पिटारा नहीं था।।
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तन्हा ही जी आये जिंदगी,ताज़्ज़व है,
क्या तुम्हारी यादों का सहारा नहीं था।।
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जिंदगी की जद्दोजहद में रुक गया था,
थका जरूर था "सिफ़र" हारा नहीं था।।
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© संजय सिफ़र