...

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*रंगत निखरती घटाओं की तेरी जुल्फ़ों ने चुराई है....🤝❤️*
रंगत निखरती घटाओं की तेरी जुल्फ़ों ने चुराई है
इन फिज़ाओं की खुश्बू भी तेरे आंचल में समाई है
अनसुनी सी थी जो ज़िंदगी की दिलकश ग़ज़ल
वो मुझे तेरे होंठों से निकले हर अल्फ़ाज़ ने सुनाई है

हद से गुज़र न जाए दिल कहीं तो तब कहूं मैं
ग़ज़ब की मदहोश चीज़ तूने नज़रों से पिलाई है
पैमाना भी छूट रहा अब तो मेरे सब्र ए दिल का
बेसब्र दिल ने तेरे नाम की महफ़िल सजाई है

आज़ादी थी कभी प्यारी मुझको तेरे आने से पहले
रिहा न करना मुझको मुझे तो तेरी क़ैद पसंद आई है
पनाह जो मुझे मशक्कत के बाद मिली तेरी पनाहों में
क़ैद ही रखना मुझको न प्यारी अब मुझे कोई रिहाई है

तेरी एक छुअन ने खिलाया है बहार के तमाम फूलों को
जज़्बातों की कली दिल में तेरी वफ़ाओं ने खिलाई है
कि तेरे नाम का गुलाब मैंने अपने आंगन में लगाया
मेरे घर आंगन के साथ तुमने मेरी ज़िंदगी महकाई है

बेतहाशा गरजके झूम झूम के बरसता है जो ये सावन
बरसात सावन को तेरे आंखों के काजल ने सिखाई है
सात सुर सरगम के हर एक गीत संगीत में सुने हैं मैंने
जब सुना घुंघरू को सुर सरगम तेरी पायल में समाई है

तुम्हें अपनी ज़िंदगी में पाकर मुझे एहसास हुआ है
कि जहन्नुम से जन्नत अब तुमने मेरी ज़िंदगी बनाई है
चलता रहूंगा बस ताउम्र मैं साथ तुम्हारे बस यूं ही
मंज़िल तो अब बस तुम्हारे कदमों ने मुझे दिखाई है.....।।।।।

*✍🏻 विकास भट्ट*


© विकास - Eternal Soul✍️