...

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सुबह
जिन सल्वटों को सोचा था सहला लेंगे -कुछ खुलने को उन गाँठों को मना लेंगे - वक़्त की फ़ेहरिस्त में उनका ज़िक्र ना हुआ - उम्मीद तो हमने पूरी रखी-पर शायद सापनो को हमारी नीयत पर यक़ीन ना हुआ -रात भर ताकते रहे अँधेरे में -जाने क्यूँ सुबह का मेरे घर से गुजरना ना हुआ