दर्द की सिसकियां...
दबी रह गई किसी कोने में उस मासूम लड़की की सिसकियां,
जब उसे पता चला कि उसका चीरहरण करने वाला दुर्योधन कोई अपना ही था।
उसकी आंखों में दर्द और विश्वासघात का ऐसा तूफान था,
जो न शब्दों में बयां किया जा सकता था और न आंसुओं में बह सकता था।
जिस घर की चारदीवारी उसे कभी सुरक्षा और खुल कर जीने की आजादी देती थी,
आज वही चारदीवारी उसे कैद और डर...
जब उसे पता चला कि उसका चीरहरण करने वाला दुर्योधन कोई अपना ही था।
उसकी आंखों में दर्द और विश्वासघात का ऐसा तूफान था,
जो न शब्दों में बयां किया जा सकता था और न आंसुओं में बह सकता था।
जिस घर की चारदीवारी उसे कभी सुरक्षा और खुल कर जीने की आजादी देती थी,
आज वही चारदीवारी उसे कैद और डर...