DB-ARYMOULIK ALFAZ
न वो अब दिखाई देते हैं न सुनाई देते हैं
कानों में गूंजती हुई वो इक तन्हाई देते हैं
दब गयी किताबों में कितनो की कहानियां
वो ज़माने के शब्द भी न अब सुनाई देते हैं
मिलते तो हैं लोग बस अब फर्जगी के लिए
एहसास अपनेपन के न अब दिखाई देते हैं
यूं तो दिलों से दिल के करीब हैं बहुत लोग
लफ़्ज़ों में रूखे अब भी सब दिखाई देते हैं
बेपनाह कोलाहल में हैं अब भी बहुत लोग
फिर भी क्यों लोग मूक से यहां दिखाई देते हैं
वो निकल गए जो अंत के सफर में कई लोग
जो ना अब दिखाई देते हैं और ना सुनाई देते हैं
© DEEPAK BUNELA
कानों में गूंजती हुई वो इक तन्हाई देते हैं
दब गयी किताबों में कितनो की कहानियां
वो ज़माने के शब्द भी न अब सुनाई देते हैं
मिलते तो हैं लोग बस अब फर्जगी के लिए
एहसास अपनेपन के न अब दिखाई देते हैं
यूं तो दिलों से दिल के करीब हैं बहुत लोग
लफ़्ज़ों में रूखे अब भी सब दिखाई देते हैं
बेपनाह कोलाहल में हैं अब भी बहुत लोग
फिर भी क्यों लोग मूक से यहां दिखाई देते हैं
वो निकल गए जो अंत के सफर में कई लोग
जो ना अब दिखाई देते हैं और ना सुनाई देते हैं
© DEEPAK BUNELA