...

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उमीद ॥
खोजने से मिल जाता है उमीद
जो बंद कमरे में छुपा है कहीं
डर सा है मन में छूकर खो न जाए कहीं
जीलेंगे चुहे बिना लेकिन खुद से नज़र मिलेंगे कैसे अभी ।

एक उमीद है उसका हाथ पकड़ना बिना डर
लेकिन समाज को है इस प्यार से गहरी नफ़रत
काश वो जानते ये है सच्चा प्यार ना कोई खुराफात
लड़की से नहीं हुआ पर हुआ तो एक इंसान से ही मोहब्बत।

हर जुबान में इश्क को इश्क ही माना जाता है
मगर क्यूं ये अलग इश्क इधर एक गुना है
चाहे पूरी दुनिया इस मोहब्बत से खिलाफ है
आख़िर में उमीद ही तो इस अंधेरे की उजाला है!

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