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महाभारत द्रोपती वचन।।
सनातन धर्म 🙏🏻
धर्म युद्ध।।

महाभारत द्रोपती वचन

जब पांडव ने मुझे दाव पर लगाकर सारी सीमाएं लागी। किसके हक से उन्होंने जुए में । मैं थी हारी। फिर दुशासन ने अपनी सारी मर्यादा थी लागी। मासिक धर्म मैं थी में जब उसने मेरे केश पड़कर कर की थी मेरी खींचा तानी। भरी सभा में वो जब मुझे घसीटते था लाया मेरी चीखे सुनके भी किसी को तरस नही था आया। मैने चिल्ला चिल्ला कर था पूछा । है गधा कहां गांडीव कहां क्या जंग लगी तलवारों को सौ सौ अधिकार तुझे अधिकार तेरे हथियारों को घुंघरू बांधो चूड़ी पहनो गलियों में नाचो छम छम छम । नहीं बेचारी मुझको समझो कि घर से भाई बुलाए हम । हुआ तुम पांचो का बल श्रीण तो क्या मेरे कृष्ण अकेले आएंगे । इस भरी सभा में अब वो ही मेरी लाज बचायेंगे। बड़े बड़े ज्ञानी से भरी इस सभा यहा सबके चेहरे मोन है दुशासन ने जब सारी सीमाएं थी लागी। भरी सभा में जब खींची थी मेरी सारी। अब आगाई थी मेरी इज्जत पे आच। फिरभी न राखी किसी ने मेरी लाज । फिर कृष्ण ने राखी मेरी आस । न आने दी मेरे दामन पे आंच। फिर मैने भी एक कसम थी खाई मेरे केश की करनी होगी दुशासन के खून से धुलाई। मेरे इस प्रण ने पांडव में युद्ध की इच्छा थी जगाई। अब एक नारी के सम्मान की खातिर महाभारत की थी लड़ाई।।
© वंदना लोधी