...

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बचपन
रंगो की होली में
आओ शामिल होते हैं
बच्चो की टोली में ,,

ना फिक्र जमाने की
ना कोशिश किसी को आजमाने की

खुल कर मुस्कुराते हैं
आओ ना कागज़ की नाव बनाते हैं

वो बारिश की बौछारो में

एक बार फिर से नहाते हैं

जहा ना जॉब की चिंता थी
ना सूरत कैसी दिखती थी
इस बात की

नोटो की जरूरत नही
चंद सिक्को में खनकती मुस्कान थी ,


आ लौट चले एक बार फिर से वही
जहा मां के आंचल में बसता संसार था

मुट्ठी में जहा आसमां था
जहा परियो की कहानियां

बीती कुछ हसीन निशानिया

वो मेले वो गुब्बारे ना मिलते
तो खुद ही गुब्बारे जैसा मुंह फूला
ले ,,

क्यू ना एक बार फिर ये सब कर
के देखे आओ ना फिर
मुड़ उस और चले ,,

जहा आम की करते थे चोरी
खेली बहुत आंख मिचौली

वो बात बात पर गुस्सा होना
वो गले फाड़ कर रोना

मां की वो प्यारी सी डाट
कान खीच कर लगाती
फटकार ,,

पापा फिर गुस्से
मे घूरे अब तो लग जाती बिन
स्कूल जाए class ,,


सुनकर मेरी बाते क्या
आपको नही आई बचपन की
याद ,,

अगर आई तो इसी बात पर
दीजिए एक प्यारी सी मुस्कान


आप पढ़ रहे हैं
✍️ रूहानिका के रूहानी
अल्फाज

Good Evening ☕☕
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