...

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अंगिनित सा स्वर।
अंतर मन में अंगिनित सा स्वर
प्रमाण मुझे दे जाती हैं,

कितना अविचल है यह मन
साक्ष्य स्वयं रख जाति हैं,

मैं मिथ्य हूं कितना ख़ुद से ही
आगाह किए चल जाति हैं,

महत्त्वाकांक्षाओं के हम जड़ में लिपटे
एक राह दिखा यह जाति हैं,

फिर भी हम ना समझ इन्हें
धूमिल किए बढ़ जाते है।


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