...

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आशा
आशा है अश्वों की भाँति,
जीवन में दौड़ लगा जाऊँ।
कोकिल की भाँति कष्टों को भी,
सहज भाव गुनगुना पाऊँ।
बन रवि स्वयं के ओज से,
आलोकित करूँ जीवन सारा।
धेनु की भाँति बन सकूँ,
मै मानव का सहारा।
वानर की सी हो चंचलता,
हो सारस की सी शांति भी।
हो भास्कर जैसी दिव्यता,
और चन्द्रमा की हो कांति भी।
वनराज की भाँति मै अपने,
वन रूपी मन पर राज करूँ।
रख बाज दृष्टि अभावों पर,
मन-दर्पण को मैं स्वच्छ करूँ।
अच्छाई रूपी कुश से ही,
मैं नीड़ हृदय का पूर्ण करूँ।
मयूर की भाँति जीवन की,
बाधाओं पर भी नृत्य करूँ।
सारस बन चेतन मन से मैं,
सब उत्तमता को चुन पाऊँ।
आशा है पक्षी बन आशाओं,
के नभ में उड़ती ही जाऊँ......।

© metaphor muse twinkle