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बोर्डिंग वाले दिन
वो बोर्डिंग वाले दिन

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एक प्यारा ख़्वाब सा लगता है अब
वो बोर्डिंग वाले दिन
उफ ! कितना सदाबहार पल था वो
कितना था हसीन

जब एक छत के नीचे हम सब यार
बिस्तर डाले सोते थे
साथ - साथ हंसते थे
और साथ- साथ रोते थे

पल में लड़ाई .. पल में यारी
यूं चलती थी छुक छुक ..रे धुक धुक
धुआं उड़ाते अपने जीवन की रेलगाड़ी
सिट्टी बजाते मस्ती में गाते
हर पल खुल के मोज उड़ाते
हम थे चलते जाते .. गम को चिढ़ाते ..
हमपे था खुशियों का नशा जो तारी ...
पल में लड़ाई .. पल में यारी

..अपना वो फोन वाला मिनी सिनेप्लेक्स
आधी आधी रात तक जिसपर पिक्चर देखा करते थे
और सुबह नाश्ता के बाद प्रेयर की जब घंटी बजती ...
तब नींद से जागा करते थे , फिर किचन की और भागा करते थे

जाड़े में 2 मिनट में बाल भींगाकर स्कूल के लिए तैयार हो जाया करते थे
मोका मिलते ही होस्टल से घंटों भर के लिए फरार हो जाया करते थे

जूनियर पे थोड़ा अकड़ दिखाना
क्रिकेट - भोलीबाल में अपना पकड़ दिखाना
वैसे तो दोस्तों में दबदबा था अपना
लेकिन लड़कियों से थोड़ा शरमाना
हम लड़कों की ..उफ्फ ये अदा
सबसे अलग थी , थी सबसे जुदा

याद है..वो 4th periods में बगल वाले छत पे जब
हर रोज एक परी सी लड़की आती थी
खुले बालों में बलखाकर टहला करती ..
और नजरें मिलने पर होले से शर्माती थी
उसे देख हम सब आहें भरा करते थे
उसके हुस्न के नूर से निगाहें भरा करते थे
वो मुस्कुराती थी हमें देख और हम सारे लड़के बहकते थे
अब तक पूरे स्कूल के लिए ये राज था .. 4th पीरियड में हम st 10 के लड़के क्यों इतना चहकते थे ???

वो जिस दिन अपने छत पे नही आती
एक मातम सा पसरा रहता था
आंखों में उम्मीद भरी रहती थी और होठों पे सहरा रहता था
एक रोज ऐसे ही जाड़े के महीने में
तय वक्त पे वो छत पे आई और झट से उतर गई
उसके जाते ही ऐसा लगा मानो हम सब का दिल कोई चुहिया फट से कुतर गई

उस रोज अब्सेंट थे इस पीरियड वाले सर
दस्तूर था खुलकर दीदार का ..न थी कोई फिकर..

उफ्फ तड़प हमारा हर छन आसमानी होता जाता था
नैन हमारा छन छन धीरज खोता जाता था...
फिर सबकी आंखें अचानक से उसे छत पर देख चमक उठी
वातावरण पूरा चहक उठा.. धड़कनें सबकी बहक उठी ...
प्रूसन जोशी के अंदाज में बोले तो
झटक कर जुल्फ वो बारीशें आजाद कर रही थी
और हमारे दिल में अपनी चाहत आबाद कर रही थी
सब कुछ सही चल रहा था फिर पता नही क्यों वो छत से उतर गई
लेकिन इस बार फिर से लोटने की उम्मीद हम सबके दिल में भर गई
फिर सहसा पूरे जोश में .. अजब सा मदहोश में
गूंज उठा पुरे स्कूल भर में एक जोड़ का शोर ...
St 10 के सारे लड़के उस लड़की के छत की ओर देखते हुए चिल्ला रहे थे ...once more ..Once more ..
एक बार और ... एक बार और.....

इस शोर का यूं असर हुआ ..


अब पनिशमेंट के लिए पूरा क्लास मैदान में मौन खड़े थे ...
और टीचर्स चिल्लाने के पीछे की वजह जानने के लिए अड़े थे

तभी पीछे से ऋतिक मुझसे बोला .. तुमको लगता है हमलोग की आवाज वो सुन पाई होगी ..??
अबे राजीव क्या साला हमलोग यहां बेकार में खड़े हैं ..
चलो छुप के भागते हैं ..वो लड़की छत पे आई होगी ...

तुषार को उसके क्रश की ओर लव लेटर लिखने से लेकर
डिजिटल क्लास में पोर्न देखने तक का सफर तक हम साथ रहे
जीवन में अब करीब तो रहना थोड़ा मुश्किल है लेकिन
जीवन भर हम सब दोस्त ही रहेंगे चाहे जैसी भी हालात रहे
© Rajeev Ranjan