बोर्डिंग वाले दिन
वो बोर्डिंग वाले दिन
__________________
एक प्यारा ख़्वाब सा लगता है अब
वो बोर्डिंग वाले दिन
उफ ! कितना सदाबहार पल था वो
कितना था हसीन
जब एक छत के नीचे हम सब यार
बिस्तर डाले सोते थे
साथ - साथ हंसते थे
और साथ- साथ रोते थे
पल में लड़ाई .. पल में यारी
यूं चलती थी छुक छुक ..रे धुक धुक
धुआं उड़ाते अपने जीवन की रेलगाड़ी
सिट्टी बजाते मस्ती में गाते
हर पल खुल के मोज उड़ाते
हम थे चलते जाते .. गम को चिढ़ाते ..
हमपे था खुशियों का नशा जो तारी ...
पल में लड़ाई .. पल में यारी
..अपना वो फोन वाला मिनी सिनेप्लेक्स
आधी आधी रात तक जिसपर पिक्चर देखा करते थे
और सुबह नाश्ता के बाद प्रेयर की जब घंटी बजती ...
तब नींद से जागा करते थे , फिर किचन की और भागा करते थे
जाड़े में 2 मिनट में बाल भींगाकर स्कूल के लिए तैयार हो जाया करते थे
मोका मिलते ही होस्टल से घंटों भर के लिए फरार हो जाया करते थे
जूनियर पे थोड़ा अकड़ दिखाना
क्रिकेट - भोलीबाल में अपना पकड़ दिखाना
वैसे तो दोस्तों में दबदबा था अपना
लेकिन लड़कियों से थोड़ा शरमाना
हम लड़कों की ..उफ्फ ये अदा
सबसे अलग थी , थी सबसे जुदा
याद है..वो 4th periods में बगल वाले छत पे जब
हर रोज एक परी सी लड़की आती थी
खुले बालों में बलखाकर टहला करती ..
और नजरें मिलने पर होले से शर्माती थी...
__________________
एक प्यारा ख़्वाब सा लगता है अब
वो बोर्डिंग वाले दिन
उफ ! कितना सदाबहार पल था वो
कितना था हसीन
जब एक छत के नीचे हम सब यार
बिस्तर डाले सोते थे
साथ - साथ हंसते थे
और साथ- साथ रोते थे
पल में लड़ाई .. पल में यारी
यूं चलती थी छुक छुक ..रे धुक धुक
धुआं उड़ाते अपने जीवन की रेलगाड़ी
सिट्टी बजाते मस्ती में गाते
हर पल खुल के मोज उड़ाते
हम थे चलते जाते .. गम को चिढ़ाते ..
हमपे था खुशियों का नशा जो तारी ...
पल में लड़ाई .. पल में यारी
..अपना वो फोन वाला मिनी सिनेप्लेक्स
आधी आधी रात तक जिसपर पिक्चर देखा करते थे
और सुबह नाश्ता के बाद प्रेयर की जब घंटी बजती ...
तब नींद से जागा करते थे , फिर किचन की और भागा करते थे
जाड़े में 2 मिनट में बाल भींगाकर स्कूल के लिए तैयार हो जाया करते थे
मोका मिलते ही होस्टल से घंटों भर के लिए फरार हो जाया करते थे
जूनियर पे थोड़ा अकड़ दिखाना
क्रिकेट - भोलीबाल में अपना पकड़ दिखाना
वैसे तो दोस्तों में दबदबा था अपना
लेकिन लड़कियों से थोड़ा शरमाना
हम लड़कों की ..उफ्फ ये अदा
सबसे अलग थी , थी सबसे जुदा
याद है..वो 4th periods में बगल वाले छत पे जब
हर रोज एक परी सी लड़की आती थी
खुले बालों में बलखाकर टहला करती ..
और नजरें मिलने पर होले से शर्माती थी...