...

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एक स्त्री का सफर।
लड़की से स्त्री बन गई और,
स्त्री से मां बन गई और,
देखते ही देखते घर के कामों में सिमट गई।

जो पूरे साल पढ़ती थी एक परीक्षा के लिए,
अब देती है अनजाने में रोज परीक्षा।

कहने को तो सब कुछ उसका है,
फिर भी उसे सब कुछ अनजान सा लगता है,
देखकर यह सब उसका मन रोज सिकुड़ता है।

जो रोज खुद करती थी सवाल ,
आज खुद देती है जवाब,
ना चाहते हुए भी खुद को समझती है गुनहगार,


और हो गई चार दिवारीयों का शिकार,
न जाने उसकी जिंदगी किस मोड़ पर आ गई,
देखते ही देखते अपनी खुशियों से हार गई,

और

देखते ही देखते वह स्त्री बन गई और,
अपने सपनों को धूप में कपड़ों की तरह
सुखना सीख गई।

© Dolphin 🐬 (Prachi Goyal)