...

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मैं सृजन कर रहा हूं।-
विसर्जन के प्रश्वास मे असीम जीवन खोज रहा हूं।
युक्ति से अमर जीवन खोज रहा हूं।

श्वासो को संख्या के भार से मुक्त कर दुं।
या प्रज्ञा में अमरकोष रख दुं।

किसी ने क्षणो को उनकी उम्र पूछी है?
आज जीवन के पूर्व और मृत्यु के उपरांत में,
शेष-शुन्य आनंद स्मृति रच रहि है!

संयोग कैसे संकल्प-जीवन'‌ से मुक्त-शुन्य' में हुआ।
वियोग कैसे जीवन में, मृत्यु-विकल्प' से हुआ।

मैं संयोग-वियोग' के पार आनंद स्मृति अर्जन कर रहां हुं।
पुष्पों के मिटने पर मैं सौरभ अमर कर रहा हूं।

प्रसूत श्रृंखला के गति में, प्रकृति में,
अजन्मा आनंद बनकर ठहर रहा हुं।
मैं विष का अंत कर,जीवन अमर कर रहा हूं।

विसर्जन के प्रश्वास मे असीम जीवन खोज रहा हूं।

@kamal