...

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हम, हम हैं
ना जानें क्यों हम से,
ख़फ़ा ख़फ़ा सा,
आज कल है ये आईना।

ना जानें क्यों हमें,
पहचानने से,
क्यों इंकार कर रहा है आईना।

हम तो वही है,
पर शायद ज़माने का रंग,
हमें दिखा रहा है आईना।

इशारों ही इशारों में,
हमें ख़ुद को बदलने कि,
मशवरा दे रहा है आईना।

पर हम, हम हैं,
हमें कहाँ परवाह ज़माने की,
ख़ुद को बदलने के बजाय,
हम ने बदल डाला आईना।