...

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बेटी के माँ-बाप मजबूर नहीं होते
बेटी भी तो जन्म लेती है उसी तरह ,
जिस तरह है जन्मता बेटा,
फिर क्यों भेद करें ये दुनिया,
क्यों करे बेटा-बेटा,
हर घर में नहीं देता भगवान बेटियाँ,
क्योंकि सबकी औकात नहीं है ,
जो वो पाल सकें बेटियाँ,
जो कर न सकेगा बेटा,
वो कर दिखाती हैं बेटियाँ,
एक माँ-बाप को संभाल न सका बेटा,
दो-दो घरों को संभालती हैं बेटियाँ,
कुल की लाज नहीं कुलदीपक हैं बेटियाँ,
दो-दो घरों को रोशन करती हैं बेटियाँ,
इसीलिए बेटियों के माँ-बाप कभी मजबूर नहीं होते,
क्योंकि ससुराल में रहकर भी बेटियों के दिल माँ-बाप से दूर नहीं होते,
कौन कहता है पराये घर से आयी हैं बेटियाँ,
बल्कि दो पराये घरों को एक परिवार बनायी हैं बेटियाँ।