...

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मेरा गांव
मेरे गांव को गांव रहने दो ।
चाहे कच्चे घरों को पक्का बना लो,
पर खेतों और खलिहानों को ऐसे ही रहने दो।।
मेरे गांव को गांव रहने दो।
चाहे कच्ची पगडंडी को पक्का करा लो, पर ताल तलैया को ऐसे ही रहने दो।।
चौबारे में लगे वृक्ष को रहने दो,‌
जहां बैठ कर घंटों बातें करती दादी और नानी ।
घर की औरतों को तपती दुपहरी में पेड़ों की ठंडी छांव को ऐसे ही रहने दो।।
चाहे घरों को रोशनी से सजालो,
पर खेतों में घुमते जुगनू की रोशनी को ऐसे ही रहने दो।
चाहे हर सुख सुविधाएं जुटा लो,
पर राहों में बरगद, पीपल, नीम की छांव को ऐसे ही रहने दो।।
चाहे कितना भी विकसित हो जाओ,
पर पशु पक्षियों का आश्रय ऐसे ही रहने दो।
मेरे गांव को गांव रहने दो।।

© Dr. Urvashi Sharma

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