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Lockdown
ये कैसा वक़्त,कैसा नज़ारा है
कदम चारदीवारी के अंदर
मन यायावर(आवारा) हुआ जा रहा है।
खूब शौक था आसमान मे उड़ने का
आज वही पंख धरती पर फड़फड़ा रहा है।
सब कुछ ठहरा है,इन्सानो ने इन्सानो पर ही
पहरा लगा डाला है
किसने क्या किया कोई हिसाब नही पुछी जा रही है
क्योंकि यहा किसीको कोई रियायत
नही दी जा रही।
रिवायत( tradition)यही है जैसा किया वैसा भरना
पडेगा,
सबकी मन्दिर मस्जिद बन्द है, मजारत(pardon)
रूह से ही माँगना पडेगा।
प्रकृति भी आज मंद मंद मुस्करा रही है,
इन्सान को उसकी सही औकात
बता रही है।
सब्र रखो! वक़्त है! गुजर जायेगा
फिर से एक नया दौर जल्द ही लौटकर आएगा।
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