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खुद की तलाश
खुद की तलाश

संभालते संभालते हर रिश्ते को,,
खुद जिम्मेदारियों में खो गई हूं।
आज खुद को देखा आईने में,,
क्या थी और क्या हो गई हूं।

बचपना ही मर गया मेरा,,
जब से मैं समझदार हूई।
आज महसूस किया है मैंने,,
जैसे खुद की ही मैं कर्जदार हूई।

सोचा खुद की थोड़ी तलाश कर लूं
पर अब जिम्मेदारियां बेशूमार हैं।
काश थोड़ा वक्त दे पाती खुद को,,
आज इसी बात का दिल में मलाल है।

जिंदगी की समझ जब आई,,
तब मायके को संवारना था।
मान, मर्यादा, और इज्ज़त भाईयों की,,
सबको मुझे ही तो संभालना था।

मां की कोख की हमेशा लाज रखी,
पिता की हर बात का सम्मान किया।
एक अच्छी बेटी बनते बनते,,
अपने हर...