ग़ज़ल में..... (ग़ज़ल)
आओ तुम्हे सुनाऊँ, शहनाइयाँ ग़ज़ल में।
रातों की देखो तुम फिर लंबाइया ग़ज़ल में।।
कोई मुझे बताओ जाऊं कहां मैं आखिर,
ले आती हैं मुझे ये तन्हाइयां ग़ज़ल में।
जब से है मैंने देखा उनको बनाते जुल्फें,
तब से उतर हैं आईं सब कंघिया ग़ज़ल में।
महबूब मेरा मुझसे नजरें चुरा रहा है,
क्या मैंने सिर्फ़ लिक्खीं, रुस्वाइयाँ...
रातों की देखो तुम फिर लंबाइया ग़ज़ल में।।
कोई मुझे बताओ जाऊं कहां मैं आखिर,
ले आती हैं मुझे ये तन्हाइयां ग़ज़ल में।
जब से है मैंने देखा उनको बनाते जुल्फें,
तब से उतर हैं आईं सब कंघिया ग़ज़ल में।
महबूब मेरा मुझसे नजरें चुरा रहा है,
क्या मैंने सिर्फ़ लिक्खीं, रुस्वाइयाँ...