...

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साड़ी(एक वस्त्र)
लिवाज़ में ऐसी शरीर ढकाऊ ओढ़े जो चुनरी बन जाऊं
नारी का अभिमान हु मै हां हां एक साड़ी हु मैं

सोलह श्रृंगार के सजती नारी न पहने तो अधूरी लगती नारी
नारी का हर श्रृंगार हु मै , हा हा एक साड़ी हु मैं

बखूबी हर किरदार निभाऊ जो भी पहने मैं शोभा बढ़ाऊ
बहन भी पहने माई भी पहने और किन्नर को भी खूब सजाऊ

लाल जोड़ा बियाह मे लगता पियरी का भी नाम है चलता
त्योहार की हर शोभा हु मैं हां हां एक साड़ी हु मैं

कृष्ण की जब थी उंगली कटी तब पट्टी के भी काम मैं आई
अस्त्र भी न आया काम वहा पर जहां कृष्ण ने साड़ी से थी लाज़ बचाई

कृष्ण ने ऐसे साड़ी का था कर्ज़ चुकाया एक नारी का था मान बचाया
हर नारी का सम्मान हु मैं हां हां एक साड़ी हु मैं


© _Ankaj Rajbhar 🥺