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मिट्टी ओर चाक
#जाने-दो..!
जाने दो जो चला गया,
मृगछालों से जो ठग गया।
बेवक्त तू वक्ता बना गया,
अपने व्यक्तित्व को बदलते देख,
तू खुद से मुँह मोड़ गया!
जो कहते रहे ,कभी ना बदलना,
दुनिया की भरी चमक़ में,
वो अपना जमीं भूल गया!
मिट्टी के चाक पे रखा,
तेरा ये स्वभाव,
हर चोट से बदलता चला गया!
© Five Fifteen
जाने दो जो चला गया,
मृगछालों से जो ठग गया।
बेवक्त तू वक्ता बना गया,
अपने व्यक्तित्व को बदलते देख,
तू खुद से मुँह मोड़ गया!
जो कहते रहे ,कभी ना बदलना,
दुनिया की भरी चमक़ में,
वो अपना जमीं भूल गया!
मिट्टी के चाक पे रखा,
तेरा ये स्वभाव,
हर चोट से बदलता चला गया!
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