फुटपाथ
ये फुटपाथ सदियों से सर्दी गर्मी बरसात सबकुछ चुपचाप सह रहा है
ये रोज देखता है हजारों लोगों को
सुनता है उनके दुख दर्द को,
उनकी हंसी को, झूठे -सच्चे वायदों को,
देखता है ऐश्वर्य को ,दुख को, गरीबी को
और शायद महसूस भी करता हो
मगर सब कुछ अपने भीतर समेटे रखता है किसी से कुछ नहीं कहता
चाहे कितनी ही दरारे पड़ जाए ,
टूट-फूट हो जाए ...
ये रोज देखता है हजारों लोगों को
सुनता है उनके दुख दर्द को,
उनकी हंसी को, झूठे -सच्चे वायदों को,
देखता है ऐश्वर्य को ,दुख को, गरीबी को
और शायद महसूस भी करता हो
मगर सब कुछ अपने भीतर समेटे रखता है किसी से कुछ नहीं कहता
चाहे कितनी ही दरारे पड़ जाए ,
टूट-फूट हो जाए ...